कुछ अनकही बाते ✍️

 मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था


 मैं उस को देखने को तरसता ही रह गया जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था


बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था

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