कुछ अनकही अनसुनी सी बाते ❤️❤️
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
आईना हाथ में है तो सूरज पे अक्स डाल
कुछ लुत्फ़ भी सुराग़-रसाई में आएगा
चढ़ते ही धूप शहर के खुल जाएँगे किवाड़
जिस्मों का रहगुज़ार रवानी में आएगा
रख़्त-ए-सफ़र भी होगा मेरे साथ शहर में
सहारा भी शौक़-ए-नक़्ल-ए-मकानी में आएगा
फिर आएगा वो मुझसे बिछड़ने के वास्ते
बचपन का दौर फिर से जवानी में आएगा
कब तक लहू के हब्स से गरमाएगा बदन
कब तक उबाल आग से पानी में आएगा
सूरत तो भूल बैठा हूँ आवाज़ याद है
इक उम्र और ज़ेहन गिरानी में आएगा
'साजिद' तू अपने नाम का कतबा उठाए फिर
ये लफ़्ज़ कब लिबास-मआनी में आएगा
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